Thursday, May 7, 2015

Whatsapp Funny Hindi Jokes

टीचर: नेपोलियन की मृत्यु किस लड़ाई में हुई?
पप्पू: उसकी आखिरी लड़ाई में।
टीचर: स्वतंत्रता की घोषणा पर कहाँ हस्ताक्षर किये
गए?
पप्पू: किताब के पृष्ठ के आखिर में।
टीचर: तलाक का मुख्य कारण क्या होता है?
पप्पू: शादी।
टीचर: असफल होने का मुख्य कारण क्या है?
पप्पू: परीक्षा।
टीचर: आप ब्रेकफास्ट में क्या नही खा सकते?
पप्पू: लंच और डिनर।
टीचर: आधे सेब की तरह क्या दिखता है?
पप्पू: दूसरा आधा सेब।
टीचर: अगर आप नीले समुंद्र में लाल पत्थर फेंकेंगे तो ये कैसा
हो जायेगा?
पप्पू: यह गीला हो जायेगा।
टीचर: कोई आदमी आठ दिन तक बिना सोये कैसे रह
सकता है?
पप्पू: कोई समस्या नही है, वह रात को सो जायेगा।
टीचर: तुम एक हाथी को एक हाथ से कैसे उठा सकते हो?
पप्पू: आपको ऐसा हाथी ही नही मिलेगा जिसका एक
ही हाथ हो।
टीचर: अगर एक दीवार को आठ आदमी दस घंटे में बनाते है
तो चार आदमी को इस दीवार को बनाने में कितना समय
लगेगा?
पप्पू: थोड़ा भी नही, क्योंकि दीवार तो पहले ही बन
चुकी है।
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इश्क मेँ हम तुम्हें क्या बतायेँ किस कदर चोट खाये हुए हैं
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.कल मारा था बाप ने उसके
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आज उसके भाई भी आये हुए है|
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जिस दिन मेरा पैगाम ना मिले दोस्तों तो समझ लेना...
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काम मिल गया है। अब मैं तुम्हारी तरह बेरोज़गार नहीं हूँ।
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बिसर गया है सब कुछ, मेरी लाईफ में !
कुछ यादें बची हैं, इस दिल के पेन ड्राईव में !!
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जिस दिन मैंने दुनिया में, लॉग इन किया !
सारा मोहल्ला खुशियों से रंगीन किया !!
:
स्कूल में मेरी, होती अक्सर पिटायी थी !
मैं 2G था, और मैडम वाईफाई थी !!
:
उस पर मेरा, सॉफ्टवेयर बडा पुराना था !
ट्यूब लाईट था मैं, जब CFL का जमाना था !!
:
गणित में तो, मैं बचपन से ही फ़्लॉप था !
भेजे का पासवर्ड, बड़े दिनों तक लॉक था !!
:
कितना भी मारो, भेजे को सिगनल मिलता
नहीं !
बिन सिगनल, जिंदगी का नेटवर्क चलता
नहीं !!
:
जब जब स्कूल जाने में, मैं लेट हुआ !
प्रिंसपल की डाँट से, सॉफ़्टवेयर अपडेट हुआ !!
:
हाईस्कूल में, ईश्क का वायरस घुस बैठा !
भेजे में सुरक्षित, सारा डाटा चूस बैठा !!
:
नजरों से नजरें टकरायी, 10th क्लास में !
मैसेज आया, मेरे दिल के इनबॉक्स में !!
:
जब जब मैंने, आगे बढकर पोक किया !
धीरे से उसने, नजरें झुकाकर रोक लिया !!
:
कॉलेज में देखा किसी गैर के साथ, तो मन बैठा !
ईश्क का वायरस, एंटीवायरस बन बैठा !!
:
वो रियल थी, लेकिन फ़ेक आईडी सी लगने
लगी !
बातों से अपनी, मेरे यारों को भी ठगने लगी !!
:
आयी वो वापस, दिल पे मेरे नॉक किया !
लेकिन फ़िर मैंने, खुद ही उसको ब्लॉक किया !!
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मेरे जीवन में, अब प्यार के लिए स्पेस नहीं !
मैं ‘मीत’ हूँ पगली, मजनू का अवशेष नहीं !!
:
कॉलेज से निकला, दुनियादारी सीखने लगा !
बना मैं शायर, देशप्रेम पर लिखने लगा !!
:
जब दिल चाहे, तसवीर नयी बनाता हूँ !
आदमी को उसका, असली चेहरा दिखलाता हूँ !!
:
डरता है दिल, जिंदगी मेरी ना वेस्ट हो !
जो कुछ लिखूँ, सदियों तक कॉपी पेस्ट हो !!
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ख्वाहिश है, मेरे गीत जहाँ में लाउड हों !
इस ‘ज़िंदगी’ का क्या है, जाने कब लॉग आउट
हो !
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सोनूं, ''मां आज हमारे पड़ोसी ने मुझसे बातें की।''
मां, ''मैंने कहा था न कि अच्छे बच्चों से सभी बातें करते हैं। वैसे क्या कहा उन्होंने?''
सोनू, ''उन्होंने कहा कि फिर हमारे लॉन में आए तो मैं तुम्हारी टांगे तोड़ दूंगा।''
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अध्यापिका (छात्र से)- तुम लेट क्यों आये? स्कूल 7 बजे शुरु होता है फिर देर क्यों की?

छात्र - मैम आप मेरी इतनी फिक्र मत किया करो लोग गलत समझते हैं।
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छुटकू: मम्मी मैं अब समझ गया बहुत ही गरीब लोग कैसे होते हैं?
मम्मी: क्यों? कैसे होते हैं गरीब लोग?
छुटकू: कल सीमा ने पचास पैसे क्या निगल लिये उसके मम्मी-पापा तो हैरान परेशान होकर इधर-उधर भागने लगे।
50 पैसे के लिए उसे तुरन्त ही मोटरसाईकिल पर बैठा डॉक्‍टर के पास ले गये।.
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मां (बेटे से), ''राजू, तुमने पापा की चिट्ठी का जवाब भेज दिया?''
राजू-''नहीं।'
मां, ''क्यों?''
राजू, ''आपने ही तो कहा था कि अपने से बड़ों को कभी भी जवाब नहीं देते।''
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मुन्नाभाई – ए सर्किट , ये कुत्ते पूछ क्यों हिलाते हैं ? सर्किट – कॉमन सेंस की बात है भाई ,अब पूछ कुत्ते को तो नही हिला सकती ना ..
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लड़की पटाने के लिए चुपके से उसके पीछे जाकर उसे डराओ. अगर वो हँसी तो समझो पट गई और गुस्सा हुई तो जोर जोर से चिल्लाओ - दीदी डर गई , दीदी डर गई.
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भिखारी भीख माँगने एक घर के दरवाजे पर पहुँचा। दस्तक दी। अंदर से एक पैंतालीस साल की महिला आई।
भिखारी : माताजी भूखे को रोटी दो।
महिला : शरम नहीं आती, हट्टे-कट्टे होकर भीख माँगते हो। दो हाथ हैं, दो आँख हैं, पैर हैं, फिर भी भीख माँगते हो?
भिखारी : माताजी, आप भी खूबसूरत, गोरी-चिट्टी हैं, गजब का फिगर है और अभी आपकी उम्र ही क्या है? आप मुंबई  जाकर हीरोइन क्यों नहीं बन जाती? घर पर बेकार बैठी हो।
महिला : जरा रुको, मैं अभी तुम्हारे लिए हलवा-पूरी लाती हूँ।
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Tuesday, May 5, 2015

Poetry Collection-3 (कविता संग्रह-३)

अकाल-

मौत के दरवाजें से
झांकती एक ज़िन्दगी
तरस रही है
एक बूंद पानी के लिये
तड़प रही है
एक रोटी के लिये
सरकारी आंकड़ों में
उत्पादन बढ़ा है
गतवर्ष की तुलना में
निर्यात बढ़ा है
फिर भी पलामू का
केशवराम भूख से व्याकुल
मौत के दरवाज़े पर खड़ा है
तीन साल से
रबी‚ भदई और खरीफ
एक भी फसल नहीं हुई
तीन सौ एकड़ उपजाऊ ज़मीन
बंजर बन गई
फसल तो दूर
घास भी नहीं उग रही
आदिमानव की तरह
लोग जंगलों में भटकते हैं
पौधों की जड़ों को खोदते हैं
काटते – उखाड़ते हैं
कड़वाहट निकालने के लिये
पानी में उबालते हैं
फिर इसे चबाते हैं
पेट की आग बुझाने के लिये
बाज़ार में ‚ सरकारी गोदामों में
बहुत अनाज है
किन्तु ये
गरीब दाने दाने को मोहताज हैं।

-शंकर सिंह
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आंखों का क्या-

आँखों का क्या वो तो यूँ ही गाहेबगाहे भर
आती हैं।
सोने से पहले रोने से नींद मुझे बेहतर आती है।।
मेरी किस्मत से आँधी का ना जाने कैसा
नाता है।
तूफाँ को ले साथ बिचारी फिर फिर मेरे घर
आती है।।
मुसीबतों को मेरे घर का पता किसीने बता
दिया है।
तरह तरह का भेस बना वो अकसर मेरे घर आती
हैं।।
परेशानियों का भी मुझ पर आने का अंदाज़
अलग है।
ऊपर से सजधजकर अंदर पहन ज़िरहबख्तर आती हैं।।
उलझन को सुलझाने पर भी लौट दुबारा यूँ आती
हैं।
सावन के महिने में दुलहन ज्यूँ अपने पीहर आती
है।।
ग़म का मुझसे और 'ज्ञान' का ग़म से कुछ ऐसा
रिश्ता है।
ज्यूं परवाने के पंखों को जला शमा खुद मर
जाती है।।

– ज्ञानराज माणिकप्रभ
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अग्निपरीक्षा-

हर इंसान की जिंदगी में
इक वक्त आता है
जब वह अपने आप को
अकेला असहाय असमर्थ
और मुसीबतों से घिरा हुआ पाता है
अपने लगते हैं बेगाने
और बेगानों की तो बात ही क्या
जी करता है जार जार रोने को
खुद को आंसुओं में डुबोने को
नहीं मिलता कोई अपना
लगते हैं सब पराये
किस से हाल कहें अपना
हमदर्द भी होते हैं महसूस
दर्द देते हुए
रिश्तों की सच्चाई
दोस्तों की वफादारी
कसे जाते हुए
कसौटी पर वक्त की
भावनाओं की कसौटी पर
सारे भ्रम हो जाते हैं
छिन्न भिन्न
सारी खुशफहमियां
साबित होती हैं
गलतफहमियां
नहीं मिलती भावनाओं को
सहारे की भीख
मिलती है उनको
सीख
सिर्फ सीख
सवाल करते हुए चेहरे
कुछ मुखर कुछ मौन
किंतु जवाब देगा कौन
जवाब देगा जन्म
और सवालों को
अंतहीन सिलसिला
अनवरत……
कभी खत्म न होने वाली
काली अंधियारी रात
आशा की किरन को तरसता मन
चंदा की चांदनी
तारों की झिलमिल
राह दिखाने में असमर्थ नाकाम
क्योंकि आसमान में छाये हैं
काले बादल
घने स्याह बादल
हर कदम इक अनजाना सा डर
क्या पता अगला कदम
कहां ले जाये
हर फैसला गलत साबित होता हुआ
आत्मविश्वास चकनाचूर होता हुआ
विश्वास लड़खड़ाता हुआ
इस कदर
कि हर फैसले से लगता है डर
फिर भी इक उम्मीद
कि वह वक्त कभी तो आयेगा
जब सबको अपने सवालों का
जबाब मिल जायेगा
अशाएं भ्रम न साबित होंगी
वक्त की कसौटी पर कसे हुए
खरे रिश्ते सच्चे दोस्त
स्वार्थ की ढेरी से छांट कर
अलग किये हुए
भले ही गिनती में कम हों
मगर यह छोटा सा खजाना है अनमोल
जो काम आयेगा ताजिन्दगी
वक्त की ठोकरों से मिली हुई सीख
हर कदम मिली नसीहतें
यह भुला देने की बात नहीं
संभाल कर रखो इन्हें
अपने दामन से बांधकर
ये कदम दर कदम काम आयेंगी तुम्हारे
ये कड़वे और खट्टे अनुभव
तुम्हें सिखायेंगे
मजबूरी और ढोंग में
फर्क करना‚
फर्क करना
अच्छे बुरे में
फर्क करना
सही गलत में
फर्क करना
दोस्त और मतलबपरस्त में
जिन्दगी की सच्चाई
दुनिया की सच्चाई
इंसान की सच्चाई
होगी तुम्हारे सामने
हट रहा है
झूठी आशाओं का बादल
पैदा करो अपने आप में
हिम्मत और बल
सामना करने के लिये
उस तेज धूप का
तुम्हारी आंखें मुंदी जाती हैं
जिसकी चमक से
तन मन जलता है तुम्हारा
जिसकी गर्मी से
तुम्हारा रक्त
भाप बन उड़ता हुआ
लड़खड़ाते हुए तुम्हारे पैर
संभालो इन्हें
यह है तुम्हारी अग्निपरीक्षा का वक्त |

- रतिकान्त झा
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अंत की ओर-

ऐसे कैसे चली जाऊंगी
अपने अंत की ओर
खाली हाथ
ले जाऊंगी
तन की मिट्टी में
खुदा तुम्हारा नाम
ले जाऊंगी गंध ज़रा सी
लिपटी होगी जो हवाओं में
ले जाऊंगी झर चुके फूल की
पथराई कामना
ले जाऊंगी हरी घास की नोक पर टिकी
एक जल की बूंद
आंखों से अपनी
ले जाऊंगी उतना आकाश
उतनी धरती
रस बस चुकी थी देह में जितनी
ले जाऊंगी अंत की ओर प्रेम
ज़रा सी प्रार्थना
और नक्षत्रों में से
आवाज़ दूंगी
तुम्हारे मौन में|

-जया जादवानी
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